Tuesday, 6 August 2013

आज हस्ते हैं उन खयालो में ऐसे , मुस्कुराते हैं सोच कर नादानीया थी कैसे , ज़हन में कुछ बेचैनिय बस जाती थी वजय का अता पता न होता वैसे

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एक विजन रखो, बड़ा सोचो, Naysayers को इगनोर करो, कठोर परिश्रम करो और दुनिया को कुछ वापस दो…बदलो इस दुनिया को. क्योंकि अगर हम नहीं तो और कौन? ...